मधुबनी में सर्वाधिक चार बार चलाया हुकुमदेव नारायण यादव ने ‘हुक्म’ दूसरी बार जीतने के लिये तैयार पुत्र अशोक यादव
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मधुबनी में सर्वाधिक चार बार चलाया हुकुमदेव नारायण यादव ने ‘हुक्म’ दूसरी बार जीतने के लिये तैयार पुत्र अशोक यादव

मधुबनी में सर्वाधिक चार बार चलाया हुकुमदेव नारायण यादव ने ‘हुक्म’ दूसरी बार जीतने के लिये तैयार पुत्र अशोक यादव

पटना
 मिथिलांचल की धरती मधुबनी की सरजमीं में कांग्रेस और वामदल के अभेद किले को तोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ बनाने वाले पद्मभूषण हुकुमदेव नारायण यादव ने जहां सर्वाधिक चार बार विजयी पताका फहराया, वहीं उनके पुत्र अशोक यादव दूसरी बार जीतने के लिये बेताब हैं।

मधुबनी बिहार के दरभंगा प्रमंडल का एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा और मधुबनी को मिथिला संस्कृति का केंद्र माना जाता है। वर्ष 1957 में मधुबनी लोकसभा सीट अस्तित्व में आया। वर्ष 1957 के चुनाव में कांग्रेस के अनिरुद्ध सिंह सांसद चुने गये। उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सूर्य नारायण सिंह को पराजित किया। शहीद सूरज नारायण सिंह, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान में जय प्रकाश नारायण (जेपी) के साथ हजारीबाग जेल में बंद थे।1942 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो इन लोगों ने निर्णय लिया की अब जेल में नहीं रह सकते। प्लानिंग की गई जेल से भागने की। 09 नवंबर, दिवाली की रात जयप्रकाश नारायण, रामनन्दन मिश्रा, योगेंद्र शुक्ल, गुलाब चंद गुप्ता, शालिग्राम सिंह और सूरज नारायण सिंह जेल की दीवार फांदकर भाग गए। जेपी को सूरज बाबू ने अपने कंधे पर बिठाकर दीवार चढ़ी थी, दूसरी तरफ कूदते वक्त जेपी का पांव कट गया।

वर्ष 1943 में आजाद दस्ता में शामिल जय प्रकाश नारायण, डा. राम मनोहर लोहिया, रामवृक्ष बेनीपुरी, कार्तिक प्रसाद समेत आठ स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इन्हें नेपाल के हनुमान नगर जेल में रखा गया, जिन्हें अगले दिन अंग्रेजी हुकूमत के सुपुर्द करना था। 23 मई 1943 को आजाद दस्ता के सेनापति सूरज नारायण सिंह अपने 35 साथियों के साथ आधी रात को हनुमान नगर जेल पर पहुंचे और हमला कर इन्हें मुक्त करा लिया। वर्ष 1973, सूरज नारायण सिंह के नेतृत्व में रांची के उषा मार्टिन कम्पनी के मजदूरों ने अपनी वाजिब मांगों के लिए हड़ताल कर दी।। 14 अप्रैल, 1973 को मजदूरों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। स्थानीय प्रशासन और कम्पनी प्रबन्धन मजबूर होकर टेबल टॉक के लिए तैयार हुआ, सूरज नारायण सिंह वार्ता में गए तभी मजदूरों पर पुलिस और गुंडों ने अचानक से बर्बर हमला कर दिया। पता चलते ही सूरज बाबू दौड़े, उन्हें पुलिस ने बुरी तरह पीटा। हमले में सूरज नारायण सिंह गम्भीर रूप से जख्मी हुए, उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन इतनी गहरी चोटें आई थी की उनकी अस्पताल में ही मौत हो गई। 21 अप्रैल को उनकी मौत के बाद उनके देह संस्कार में जेपी उनके शव से लिपट कर फूट-फूट कर रोए। रोते हुए वो कह रहे थे कि “आज मेरा दायां हाथ चला गया, इतना अकेला मैंने मेरी पत्नी प्रभावती के मौत के बाद भी महसूस नहीं किया था।

वर्ष 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के योगेंद्र झा ने कांग्रेस के अनिरुद्ध सिंह को पराजित किया। वर्ष 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवचंद्र झा सांसद बने। शिवचंद्र झा विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 1971 में कांग्रेस के टिकट पर हेड मास्टर रहे जगन्नाथ मिश्रा सांसद चुने गये। वर्ष 1977 में इस सीट से जनता पार्टी की लहर में भारतीय लोकदल (बीएलडी) के हुकुमदेव नारायण यादव ने जीत हासिल की। यादव ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के भोगेन्द्र झा को पराजित किया। कांग्रेस के शफ़ीकुल्ला अंसारी तीसरे नंबर पर रहे।1977 से पहले मधुबनी लोकसभा सीट पर कांग्रेस और वामपंथी पार्टी का कब्जा हुआ करता था लेकिन भारतीय लोकदल के हुकुमदेव नारायण यादव ने उनके गढ़ को ढ़हा दिया।

वर्ष 1980 में इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी शफ़ीकुल्ला अंसारी ने भाकपा के भोगेन्द्र झा को पराजित कर बाजी अपने नाम की। अंसारी के निधन के बाद हुये उप चुनाव में भाकपा के भोगेन्द्र झा विजयी हुये। इससे पूर्व भोगेन्द्र झा जयनगर सीट से वर्ष 1967 और वर्ष 1971 में सांसद बने थे।वर्ष 1984 में कांग्रेस ने फिर यहां वापसी की। कांग्रेस प्रत्याशी अब्दुल हन्ना अंसारी ने भाकपा के भोगेन्द्र झा को पराजित किया। वर्ष 1989 में भाकपा के भोगेन्द्र झा ने कांग्रेस प्रत्याशी अब्दुल हन्ना अंसारी को अबकी बार पटखनी दे दी। 1991 में भाकपा के भोगेन्द्र झा ने पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस प्रत्याशी जगन्नाथ मिश्रा को पराजित किया। मैथिली को संविधान के अष्टम अनुसूची में दर्ज कराने में भोगेन्द्र झा ने काफी संघर्ष किया। सांसद के रूप में पहली बार संसद भवन में मातृभाषा मैथिली शपथ लेने वाले भोगेंद्र झा हैं।वर्ष 1996 में भाकपा के चतुरानन मिश्र ने भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव को पराजित किया। केंद्र में कृषि मंत्री रहने के दौरान चतुरानन मिश्र ने देश में पहली बार राष्ट्रीय फसल बीमा योजना की शुरुआत की, जबकि विधायक रहते उन्होंने ही वृद्धावस्था पेंशन का प्रस्ताव बिहार विधानसभा में रखा था। वर्ष 1998 में कांग्रेस के डा.शकील अहमद निर्वाचित हुये। अहमद ने भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव को शिकस्त दी। भाकपा के चतुरानन मिश्र तीसरे नंबर पर रहे।

वर्ष 1999 में भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने मधुबनी की सरजमीं पर कांग्रेस प्रत्याशी शकील अहमद को पराजित कर पहली बार भाजपा का ‘कमल’ खिलाया। हुकुमदेव नारायण यादव ने वर्ष 1960 में पहली बार राजनीति में कदम रखा। वह पहली बार अपने गांव बिजुली पंचायत के ग्राम प्रधान के लिए चुने गए थे।हुकुमदेव नारायण यादव 1967 के विधानसभा चुनाव में केवटी रनवे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक बने थे। हुकुमदेव नारायण यादव वर्ष 1969 और 1972 में भी केवटीरनवे सीट पर विधायक बने। वह वर्ष 1977 में बीएलडी के टिकट पर पहली मधुबनी के सांसद बने। वर्ष 1980 में वह राज्यसभा सांसद बने। यादव वर्ष 1989 में सीतामढ़ी, से सांसद बने। यादव वर्ष 1990 में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (चंद्रशेखर सिंह की सरकार में) बने।हुकुमदेव नारायण 1999 में अटल बिहारी सरकार में मंत्री बने।

इस दौरान वे कृषि , परिवहन मंत्रालय और जहाजरानी मंत्रालय में राज्यमंत्री रहे।हुकुमदेव नारायण यादव को सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान दिया गया। वर्ष 2019 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था।
वर्ष 2004 में कांग्रेस के शकील अहमद ने एक बार फिर जीत हासिल की। अहमद ने भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव को शिकस्त दी। भाकपा के चतुरानन मिश्र तीसरे नंबर पर रहे।वर्ष 2009 में भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने कांग्रेस के शकील अहमद खान को मात दी। राजद के अब्दुल बारी सिद्दिकी तीसरे नंबर पर रहे।वर्ष 2014 में भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने फिर जीत हासिल की। भाजपा के यादव ने राजद के अब्दुल बारी सिद्दिकीको पराजित किया। जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के प्रो. गुलाम गौस तीसरे नंबर पर रहे। यह चुनाव जदयू ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होकर लड़ा था।

कभी कांग्रेस और वामपंथ का गढ़ रही मधुबनी सीट से कांग्रेस के टिकट पर दो बार सांसद रहे डॉ. शकील अहमद के वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय कूदने से मुकाबला दिलचस्प हुआ। बिहार में श्रीमती राबड़ी देवी की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री और केंद्र की मनमोहन सरकार में संचार मंत्री एवं गृह राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके अहमद मधुबनी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन महागठबंधन में यह सीट विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) पार्टी के खाते में जाने के बाद उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के वरिष्ठ प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया था।वर्ष 2019 के चुनाव में पूर्व केन्द्रीय मंत्री हुक्मदेव नारायण यादव के पुत्र भाजपा प्रत्याशी अशोक यादव ने वीआईपी के बद्री कुमार पूर्वे को शिकस्त दी।निर्दलीय प्रत्याशी डा. शकील अहमद खान तीसरे नंबर पर रहे।

प्रभु श्रीराम और माता सीता का पहली बार जिस जगह पर मिलन हुआ था, वह बिहार के मधुबनी जिले में स्थित है। हरलाखी प्रखंड के फुलहर गांव में रामायणकाल की पुष्पवाटिका में राम और सीता पहली बार मिले थे।बिहार का प्राचीन शहर मधुबनी कला-संस्कृति और पेंटिंग के लिए दुनियाभर में जाना जाता है, जब भी हम बिहार या मिथिलांचल का नाम लेते है तब इसके साथ लोक कला मधुबनी की पेंटिंग (मिथिला पेंटिंग) या मधुबनी का ज़िक्र ज़रूर आता है।पद्मजगदम्बा देवी उन कलाकारों में से एक हैं जिनके माध्यम से मिथिला पेंटिंग वैश्विक पटल पर उभरा। वर्ष 1975 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मसे सम्मानित किया था। इसके बाद सीता देवी,गंगा देवी,महासुंदरी देवी, बौआ देवी, गोदावरी देवी और दुलारी देवी को भी मिथिला पेंटिंग के लिये पद्मके पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत रामायण के दौर से ही हुई थी। तब मिथिला के राजा जनक थे। राम के शिव-धनुष तोड़ने के बाद जनक की बेटी सीता की शादी राम से तय हुई थी. राम के पिता अयोध्या के राजा थे, इसलिए मिथिला में अयोध्या से बारात आने वाली थी। जनक ने सोचा कि एक ही बिटिया है. शादी ऐसी होनी चाहिए कि जमाना याद रखे.

तो उन्होंने जनता को आदेश दिया कि सब लोग अपने घरों की दीवारों और आंगनों पर पेंटिंग बनाएं, जिसमें अपनी संस्कृति की झलक हो. इससे अयोध्या से आए बारातियों को मिथिला की महान संस्कृति का पता चलेगा।मधुबनी जिले की पहचान कवि कोकिल विद्यापति की जन्मस्थली और कालिदास की ज्ञानस्थली के रूप में है।मिथिला का मखाना विश्वप्रसिद्ध है। मिथिला के मधुबनी, दरभंगा तथा आस-पास के अन्‍य जिलों में दुन‍िया की कुल खपत का सबसे बड़ा हिस्‍सा पैदा होता है. दुन‍िया की कुल खपत का 90 प्रतिशत मखाना भारत में पैदा होता है,जिसमें से 80 प्रतिशत की भागीदारी उत्तर बिहार के इन्हीं जिलों से है। मिथिलांचल के संदर्भ में पान, माछ और मखान की चर्चा करते लोग अघाते नहीं। सच तो यह है कि मिथिलांचल का हृदय कहे जाने वाले मधुबनी में ही सबसे पहले मखाना की खेती की शुरुआत हुई थी।नितिन चंद्रा द्वारा निर्देशित मिथिला मखान को 63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में भाषा अनुभाग के तहत सर्वश्रेष्ठ मैथिली फिल्म का पुरस्कार जीता है। यह राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली बिहार और झारखंड की पहली मैथिली फिल्म है।

लोकसभा चुनाव 2024 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल भाजपा ने मधुबनी लोकसभा सीट से जहां एक बार फिर वर्तमान सांसद अशोक कुमार यादव को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं, इंडिया गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रत्याशी ने अपने दिग्गज नेता अली अशरफ फातमी पर भरोसा जताया है। अली असरफ फातमी दरभंगा से चार बार सांसद रह चुके हैं। भाजपा प्रत्याशी अशोक यादव का कहना है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने मिथिलांचल के लिए जितना काम किया है, उतना किसी भी शासनकाल में नहीं हुआ। उन्हें उम्मीद है कि एक बार यहां की जनता उन्हें अपना सांसद चुनेगी।मधुबनी लोकसभा सीट से भाजपा हैट्रिक लगा चुकी है, वह अब लगातार चौथी बार जीत हासिल करना चाह रही है।राजद प्रत्याशी अली अशरफ फातमी जो वर्ष 2019 में राजद द्वारा चुनावी टिकट नहीं दिए जाने के बाद जदयू में शामिल हो गए थे। इस बार जदयू की ओर से टिकट नहीं मिलने पर वापस राजद के खेमे में आ गये हैं।

राजद प्रत्याशी पूर्व केन्द्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी ने कहा है कि राष्ट्रीय जनता दल मेरा घर है। कुछ समय के लिए मैं इधर- उधर चला गया था। अब मैं वापस घर लौट गया हूं। हमारे नेता ने मुझपर भरोसा जताया है। जनता इस बार महागठबंधन को जीता रही है। भाजपा और जदयू का सच जनता अच्छे से जान चुकी है। वर्ष 2019 में फातमी मधुबनी से ही राजद के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था। इसके बाद वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गये थे और नामांकन भी किया था, हालांकि बाद में उन्होंने नामांकन वापस ले लिया था।

मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में ब्राम्हण मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है।इसके बाद इस सीट पर यादव मतदाता है। यहां अति पिछड़ा समाज के मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। कहा जाता है कि यहां राजद का मुस्लिम-यादव समीकरण नहीं चलता है। हुकुमदेव यादव के परिवार का पकड़ इस क्षेत्र के यादव मतदाताओं पर भी है, यही कारण है कि अच्छी संख्या में यादव मतदाता भाजपा को वोट करते हैं।भाजपा उम्मीदवार अशोक यादव अपने पिता (पूर्व मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव) की विरासत संभाल रहे हैं,उन्हें पीएम मोदी के नाम पर वोट मिलने की उम्मीद है।मधुबनी, कांग्रेस और भाकपा का गढ़ रहा है। अब लंबे समय से यहां भाजपा का प्रभुत्व है। राजद कभी यहां जीत दर्ज नहीं कर सकी है। ऐसे में फ़ातमी के लिए चुनाव बहुत कठिन है।

इसकी वजह है कि यादव राजद का वोट बैंक माना जाता है, लेकिन भाजपा प्रत्याशी भी इसी समुदाय से हैं, इसलिए यादव वोट में विभाजन होगा। लोग मानते हैं कि यदि ‘इंडिया’ गठबंधन से कांग्रेस लड़ती तो नजारा कुछ और होता।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा प्रत्याशी अशोक यादव के पक्ष मे चुनावी सभा की है। वहीं नेता प्रतिपक्ष सह पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव,विकासशील इंसान पार्टी के सुप्रीमो मुकेश सहनी ने राजद उम्मीदवार अली अशरफ फातमी के पक्ष में सभा कर उन्हें जिताने की अपील की है।

मधुबनी संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की छह सीटें हरलाखी, बेनीपट्टी, बिस्फी, मधुबनी, केवटी और जाले आती हैं। इसमें मधुबनी जिले की चार हरलाखी, बेनीपट्टी, बिस्फी, मधुबनी जबकि दरभंगा जिले की दो सीटें जाले और केवटी शामिल हैं। बेनीपट्टी, बिस्फी, केवटी और जाले में भाजपा जबकि हरलाखी मे जनता दल यूनाईटेड (जदयू) जबकि मधुबनी में राजद का कब्जा है। मधुबनी संसदीय सीट से भाजपा, राजद,बहुजन समाज पार्टी ,ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन, समेत 12 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या लाख 19 लाख 18 हजार 964 हैं।

इनमें 10 लाख 05 हजार 796 पुरूष, 09 लाख 13 हजार 76 महिला ,92 हैं, जो पांचवे चरण में 20 मई को होने वाले मतदान में इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेेंगे।राजद प्रत्याशी पांचवी बार सांसद बनने के लिये प्रयासरत हैं, वहीं भाजपा के अशोक यादव यहां पांचवी बार पार्टी का ‘कमल’ खिलाने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि मधुबनी की सियासी लड़ाई में बाजी कौन अपने नाम करता है।

 

 

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